थिरकन परिवार मे आपका स्वागत है। * अगर आपकी रुचि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों मे है तो आप हमें ई-मेल करें- thirkan@gmail.com * थिरकन सफलतापूर्वक उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड़ मे कार्य कर रही है * थिरकन संगीत और नृत्य कार्यशाला का आयोजन करेगी * थिरकन ने बनाया क्लॉथ बैंक * थिरकन ने कराया गरीब कन्याओं का विवाह * थिरकन चला रही है पुलिस के साथ मिलकर परिवारों को एक करने का अभियान *

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Wednesday, November 4, 2009

थिरकन ने बांटे ज़रुरतमन्दो को कपड़े और फल

आगरा। प्रदेश की जानी-मानी सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था "थिरकन" का सेवा अभियान तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। संस्था पिछले कई सालों से उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों मे समाज सेवा के कार्य करती आ रहा है। इसी सिलसिले को जारी रखते हुये संस्था के क्लॉथ बैंक ने शहर की एक मलिन बस्ती में रहने वाली लगभग तीन दर्जन महिलाओं को कपड़े बांटे। इसके अलावा सैंकड़ों बच्चों को फल भी वितरित किये गये।
लालकिले के सामने रामलीला ग्राउण्ड़ गेट पर "थिरकन" द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बिना किसी औपचारिकता के सन्त कबीरदास नगर मलिन बस्ती की रहने वाली महिलाओं को गर्म कपड़े और सूट बाटें गये। संस्था के सदस्यों ने जिले के आला अधिकारियों के साथ मिलकर इस बस्ती की पैंतीस महिलाओं को कपड़े बाटें और बस्ती के लगभग 80 बच्चों को सामुहिक रुप से फल वितरण किया गया। सभी बच्चे खासे उत्साहित दिखाई दिये। कार्यक्रम मे बतौर मुख्य अतिथि आये पुलिस अधीक्षक नगर उदय प्रताप ने संस्था के कार्यों को सराहते हुये कहा कि किसी संस्था का बिना सरकारी मदद के लगातार इस तरह के सामाजिक कार्य करना अपने आप मे एक मिसाल है। थिरकन जैसी संस्थाओं का उत्साह बढाने के लिये शहर के लोगों को मदद के लिये आगे आना चाहिये क्योंकि ये संस्थायें समाज के निमार्ण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आगरा विकास मंच के अध्यक्ष और समाजसेवी अशोक जैन सीए ने थिरकन को एक मिसाल बताते हुये कहा कि संस्था ने असहाय और गरीब लोगों का तन ढकने के लिये जो क्लॉथ बैंक शुरु किया है ये एक अनुठा प्रयास है। उन्होने कहा कि समाज मे रहने वाले ज़रुरतमन्दों की सेवा करने का जो काम थिरकन कर रही है उसकी सरहना की जानी चाहिये ताकि संस्था और उसके सदस्यों को प्रोत्साहन मिल सके।
एस.पी.क्राइम अशफाक अहमद ने कहा कि "थिरकन" के सदस्य पुलिस लाइन मे शुरु किये गये परिवार परामर्श केन्द्र के दौरान भी सक्रीय रहते हैं। इस तरह ये संस्था हर स्तर पर अपने कार्यों को ज़िम्मेदारी के साथ कर रही है। इस्लामिया लोकल एजेन्सी के चैयरमैन असलम कुरैशी ने भी कार्यक्रम मे बढ-चढ कर भागेदारी की। उन्होने भी "थिरकन" के जागरुकता अभियानों और सामाजिक कार्यक्रमो को जमकर सराहते हुये कहा कि धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर ऐसे कामों को करने वाली ये संस्था दूसरे लोगों को प्रोत्साहन दे सकती है।
संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह ने बताया कि "थिरकन" लगातार आठ सालों से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम करती आ रही है। जिसके लिये सारा फण्ड संस्था के सदस्य ही जुटाते हैं। जो लोग संस्था जुडना या मदद करना चाहते हैं वो thirkan@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं। या फिर ज़्यादा जानकारी के लिये www.thirkanthengo.blogspot.com पर लॉगइन कर सकते हैं। संस्थाध्यक्ष के मुताबिक "थिरकन" पुलिस द्वारा मनाये जाने वाले यातायात माह के दौरान भी जागरुकता कार्यक्रम आयोजित करेगी।
अन्त मे संस्था की सचिव एंव प्रख्यात टीवी एंकर नंदनी सिंह ने सभी सदस्यों और सहयोगीयों का आभार जताया। इस मौके पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमैटी के महासचिव शिवराज सिंह यादव के अलावा असिस्टेन्ट कमिश्नर वाणिज्जय कर अजय उपाध्याय, वीडीओ सुरेश कुमार सिंह, सपा के वरिष्ठ नेता हाजी बिलाल, वरिष्ठ समाजसेवी संदेश जैन, अमज़द कुरैशी, गौरव गुप्ता, कमलदीप, हरि बाबू और मनिका के अलावा शहर के कई गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

Sunday, October 4, 2009

थिरकन का एक और कदम...

उत्तर प्रदेश की अग्रणी सामाजिक संस्था थिरकन लगातार समाज सेवा के कार्यों को अन्जाम दे रही है और वो भी बिना किसी सरकारी मदद के। संस्था पिछले पांच माह से तीन गरीब बच्चों को शिक्षा दिला रही है। जिसमें एक कम्प्यूटर की छात्रा भी शामिल है। इस काम के लिये संस्था के सहयोगी नीरज शर्मा का खासा योगदान रहा है। नीरज पेशे से इन्जीनियर हैं और वो साउथ कोरिया मे एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहें हैं। बैंगलोर मे भी एक सहयोगी है जिनके सहयोग से कार्य किया जा रहा है। इसके अलावा देश के जाने-माने टीवी पत्रकार युसुफ अन्सारी और परवेज़ सागर का सहयोग भी संस्था को मिल रहा है। थिरकन ने अपने सभी सहयोगियों का आभार जताया है।

Tuesday, September 1, 2009

स्वाइन फ्लू जागरुकता कैम्प मीड़िया की नज़रों में

स्वाइन फ्लू को लेकर जागरुकता अभियान शुरु करने वाली सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था "थिरकन" को स्थानीय नागरिकों के साथ-साथ मीड़िया ने भी सराहा है। सोमवार को आगरा के सेन्ट एन्ड्रूज़ स्कूल से शुरु किये गये अभियान की ख़बर को सभी प्रमुख समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल्स ने प्राथमिकता के साथ प्रकाशित और प्रसारित किया है। उल्लेखनीय है कि "थिरकन" प्रदेश की ऐसी पहली सामाजिक संस्था है जिसने स्वाइन फ्लू जैसी गम्भीर बीमारी को लेकर जागरुकता अभियान चलाने की पहल की है।
स्वाइन फ्लू जैसे गम्भीर विषय को लेकर संस्था ने जिला चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों की मदद ली। संस्था के पिछले कार्यों की जानकारी होने पर आगरा के मुख्य चिकित्साधिकारी ड़ा. रामरतन ने "थिरकन" के इस प्रयास की प्रशंसा करते हुये स्वाइन फ्लू का काम देख रहे डिप्टी सीएमओ डा़. हरीश कुमार को इस अभियान मे लगाया। डिप्टी सीएमओ डा. हरीश ने "थिरकन" के साथ अभियान मे भागेदारी की और भविष्य मे इस तरह के कार्यों मे सहयोग देने का आश्वासन भी "थिरकन" को दिया। इस जागरुकता अभियान की ख़बर को दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान टाइम्स, आई नेक्स्ट आदि समाचार पत्रों ने खासी जगह दी। इसके अलावा ई-टीवी, ज़ी-यूपी, सी-न्यूज़, डीजी न्यूज़ और फोकस टीवी ने भी स्वाइन फ्लू जागरुकता अभियान की ख़बर को कई बुलेटिन मे प्रसारित किया। "थिरकन" परिवार ने इस अभियान को जारी रखते हुये मीड़िया का आभार प्रकट किया। भविष्य मे नागरिकों और मीड़िया से सहयोग की अपील भी की।

Monday, August 31, 2009

थिरकन का स्वाइन फ्लू जागरुकता अभियान शुरू

आगरा। स्वाइन फ्लू को लेकर समाज मे कई तरह की भ्रान्तियां और भ्रम फैले हुऐ हैं। सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था "थिरकन" ने लोगों को स्वाइन फ्लू के प्रति जागरुक करने के लिये एक विशेष अभियान की पहल की है। जिसके तहत शहर के अलग-अलग स्कूलों मे जाकर छात्र-छात्राओं को स्वाइन फ्लू के प्रति जागरुक किया जा रहा है। सोमवार को सैन्ट एन्ड्रूज़ स्कूल में "थिरकन" और चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों ने बच्चों को स्वाइन फ्लू के विषय मे जानकारी दी।

"थिरकन" द्वारा सैन्ट एन्ड्रूज़ स्कूल, बल्केश्वर मे आयोजित स्वाइन फ्लू जागरुकता शिविर मे मुख्य रुप से डिप्टी सीएमओ डा0 हरीश ने अपनी टीम के साथ शिरकत की। उन्होने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि स्वाइन फ्लू एक विदेशी बीमारी है जो संक्रमण से फैलती है। इसके वायरस का नाम एच-1 एन-1 है। ये वायरस हवा के द्वारा फैलता है। लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखकर इससे बचा जा सकता है। जैसे कि भीड़-भाड़ वाले इलाकों मे जाने से बचे, मास्क का प्रयोग करें। छींकते और खांसते समय टीशु पेपर का इस्तेमाल करें और इसे तुरन्त डस्टबिन मे फैंक दें। बार-बार हाथ धोने की आदत डालें। खांसी-ज़ुकाम, बुखार आदि के लक्षण होने पर सरकारी अस्पताल या अपने फिजीशियन से तुरन्त सम्पर्क करें। राजकीय चिकित्सक ड़ा राजेश त्रिवेदी ने बताया कि इसके लिये टेमीफ्लू नामक दवा सभी सरकारी अस्पतालों मे आसानी से उपलब्ध है। इसे दवा की दुकानों पर बेचे जाने पर रोक लगा दी गयी है ताकि इसका दुरुपयोग ना हो।

सैन्ट एन्ड्रूज़ स्कूल के प्रधानाचार्य डा. गिरधर शर्मा ने कहा कि "थिरकन" की पहल प्रशंसा योग्य है। छात्र-छात्राओं को इस गम्भीर बीमारी से बचने के जो उपाय बताये गये हैं वो उनके लिये लाभकारी होगें। और वो खुद जागरुक होने के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी स्वाइन फ्लू के विषय मे जागरुक करने का काम करेगें। अन्त मे संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह ने आभार जताते हुये बताया कि "थिरकन" पिछले आठ सालों से बिना सरकारी मदद के समाज सेवा के कार्यों को करती आ रही है। इस काम में संस्था के सदस्यों का योगदान रहता है। संस्था ने 2007 में गरीब और असहाय लोगों के लिये क्लॉथ बैंक की स्थापना की। जिसके माध्यम कपड़ों का वितरण जारी है। और अब संस्था ने लोगों को स्वाइन फ्लू के प्रति जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। यह काम आपसी सहयोग के बिना अधूरा है। और जनता तक इस बारे में सही जानकारी पंहुचाना भी ज़रुरी हो जाता है। इस कार्य मे मीड़िया की अहम भूमिका है।

कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राओं ने उपचिकित्साधिकारी डा0 हरीश और राजकीय चिकित्सक डा0 राजेश से स्वाइन फ्लू के विषय मे कई सवाल पूछे। चिकित्सकों ने विस्तार से उनके सवालों के जवाब दिये। "थिरकन" की ओर से सभी को जागरुकता सम्बन्धी पैम्फलेट भी बांटे गये। कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राओं के अलावा खुशी, सर्वोत्तम सिंह, गौरव गुप्ता, प्रदीप कुमार, जगत शर्मा, मनोज शर्मा, विकास गोयल, सरिका, राधेश्याम, श्रीमती रानी गुप्ता, रुबाब, मनीष सिंह और जावेद आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। संचालन कमलदीप ने किया।

Sunday, August 16, 2009

मीड़िया मे थिरकन क्लॉथ बैंक

आगरा। थिरकन सामाजिक संस्था के कार्यक्रम हमेशा माड़िया प्राथमिकता से प्रकाशित करता रहा है। इसी प्रकार थिरकन क्लॉथ बैंक द्वारा बीते दिनों गरीब असहाय लोगों को कपड़े वितरण का कार्क्रम सफलता पूर्वक आयोजित किया गया। जिसका समाचार दैनिक जागरण, दैनिक डीएलए और डीएलए एम ने प्राथमिकता के साथ प्रकाशित किया। इसी प्रकार लोकल न्यूज़ चैनल्स ने भी इस ख़बर को कई बार प्रसारित किया।इस तरह के सहयोग के लिये थिरकन परिवार ने मीड़िया का आभार जताया। उन्होने उम्मीद जताई कि भविष्य मे इसी प्रकार मीड़िया थिरकन का सहयोग करती रहेगी।

Wednesday, August 12, 2009

थिरकन क्लॉथ बैंक ने ज़रुरतमंदो को दिये कपड़े

आगरा। जानी-मानी सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था "थिरकन" के क्लॉथ बैंक ने गरीब और असहाय लोगों को कपड़े वितरित किये। साथ ही बच्चों को फलों का वितरण भी किया गया। उल्लेखनीय है कि थिरकन ने एक वर्ष पूर्व गरीब और असहाय लोगों का तन ढकने के मकसद से थिरकन क्लॉथ बैंक की स्थापना की थी। जहां कोई भी अपने पुराने या छोटे कपड़े दान कर सकता है।
थिरकन सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था के सदस्यों ने आज अनुराग नगर, बल्केश्वर मे जाकर महिलाओं और बच्चों को कपड़े वितरित किये। इसके अलावा कई लोगों को फलों का वितरण भी किया गया। संस्थाध्यक्ष श्रीमती स्नेहलता सिंह ने कहा कि हमारी संस्था बिना किसी सरकारी मदद के पिछले नौ सालों से सामाजिक कार्य कर रही है। ज़रुरतमंदो की मदद करना ही सबसे बड़ा पुण्य है। इसी मकसद के साथ हमारी संस्था ने क्लॉथ बैंक की स्थापना की है। श्रीमती सिंह के मुताबिक सदस्यों के सहयोग से पुराने या छोटे हो चुके कपड़े एक जगह एकत्र कर क्लॉथ बैंक मे जमा कर रहे है। इन कपड़ों को सामुहिक रुप से गरीब और असहाय को वितरित किया जा रहा है। उन्होने कहा कि हमे इस बात को समझने की ज़रुरत है कि हमारे-आपके पुराने कपड़े किसी गरीब बच्चे का सपना हो सकते हैं। उन्होने सभी शहरवासियों से अपने पुराने या छोटे हो चुके कपड़े संस्था को दान करने की अपील भी की।
इस असवर पर संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह, सदस्य खुशी, कमलदीप, मंजू शर्मा, प्रदीप, राजकुमार वर्मा, विष्णु शर्मा आदि के अलावा वस्त्र लेने वालों मे आशा देवी, नीलम, भावना, लाली, चुन्नी और सोनिया आदि के नाम प्रमुख हैं।

Wednesday, July 8, 2009

महिलाओं के लिये भी नृत्य कार्यशाला

बच्चों की नृत्य कार्यशाला के बाद अब थिरकन महिलाओं को प्रशिक्षित करेगी। थिरकन की इस कार्यशाला मे विशेषकर गृहणियों और महिलाओं को नृत्य प्रशिक्षण दिया जायेगा। ये शिविर भी आगरा शहर के विभव नगर मे आयोजित किया जा रहा है। गौरतलब है कि लगभग एक माह से थिरकन की नृत्य कार्यशाला चल रही है। जिसमें कई बच्चों को विभिन्न प्रकार का नृत्य प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसी कार्यशाला के बाद महिलाओं के लिये नृत्य प्रशिक्षण दिया जायेगा। यह कार्यशाला भी एक माह के लिये आयोजित की जा रही है। यह जानकारी संस्था की अध्यक्ष श्रीमती स्नेहलता सिंह ने दी।

Friday, June 19, 2009

उत्साह से भरे हैं थिरकन के प्रतिभागी

आगरा। थिरकन की सांस्कृतिक कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रतिभागी उत्साह से भरे हुये हैं। कार्यशाला मे नृत्य प्रशिक्षण के प्रतिभागियों की संख्या अधिक है। प्रतिभागियों का कहना है कि उन्हे यहां आकर बहुत मज़ा आ रहा है। और वो हर बार छुट्टियों मे इसी तरह की कार्यशाला मे भाग लेना चाहेगें। उनके मुताबिक उनकी प्रशिक्षक, कॉरियोग्राफर का सिखाने का तरीका बहुत ही सरल है इसीलिये उन्हे नृत्य सीखने मे आसानी हो रही है। गौरतलब है कि संस्था कई सालों से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा जागरुकता फैलाने का काम कर रही है।
कार्यशाला मे विदुषी, सोम्या, काव्या, अक्षिता, मानसी, भव्या, तान्या, मेघा, सिमरन, श्रुति, आस्था, श्रीमती नीलम और श्रीमती कृति के नाम प्रमुख हैं।

Thursday, June 4, 2009

नृत्य कार्यशाला मे प्रशिक्षण शुरु

आगरा मे आयोजित थिरकन की नृत्य कार्यशाला मे प्रतिभागियों को तीसरे दिन लाईट डान्स के बारे मे जानकारी दी गयी और उन्हे स्टेप भी सिखाये गये। कार्यशाला की निर्देशक जानी-मानी टीवी एंकर और कॉरियोग्राफर नन्दनी सिंह के मुताबिक सभी प्रतिभागी खासे उत्साह से भरे हुये हैं। उनके अनुसार विभव नगर के प्रतिभागीयों की संख्या मे ओर बढोत्तरी की उम्मीद है। हर रोज़ नये रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं। प्रतिभागीयों में खुशी, सोम्या, सोनालिका, श्रुति, मेघा और विदुषी आदि के नाम प्रमुख है। कार्यशाला के दौरान थिरकन की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह भी मौजूद थीं।

Wednesday, June 3, 2009

थिरकन कार्यशाला छायी मीड़िया में... रजिस्ट्रेशन जारी

आगरा। थिरकन संस्था की कार्यशाला के शुभारम्भ की ख़बर को स्थानीय मीड़िया ने पहले की तरह उचित स्थान दिया है। नेशनल न्यूज़ चैनल फोकस टीवी और ज़ी न्यूज़ उत्तर प्रदेश के अलावा आगरा के अग्रणी स्थानीय न्यूज़ चैनल सी न्यूज़ ने थिरकन की नृत्य कार्शाला का समाचार पैकेज कई बुलेटिन मे चलाया। साथ ही तीनों न्यूज़ चैनल्स पर कार्यशाला सम्बन्धी स्क्रोल यानि टिकर भी चल रहा है। प्रिन्ट मीड़िया ने भी थिरकन की कार्याशाला के समाचार को अखबारों मे तस्वीर समेत प्रकाशित किया। खासतौर पर डीएलए हिन्दी दैनिक और ई-पत्र पर ख़बर को तस्वीर समेत लगाया गया। यह नृत्य कार्यशाला 30 जून तक चलेगी। आगरा शहर के विभव नगर, सेक्टर-2 मे आयोजित इस वर्कशॉप में रजिस्ट्रेशन अभी जारी है। गौरतलब है कि कई जाने-माने पत्रकार थिरकन से जुड़े हैं। और संस्था अब कई शहरों मे पत्रकारिता शिविर भी आयोजित करने की योजना बना रही है।

थिरकन की नृत्य कार्यशाला शुरु

उत्तर प्रदेश की जानी-मानी सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था थिरकन हर साल की भांति इस बार भी नृत्य कार्यशाला का आयोजन कर रही है। इस बार संस्था ने इस कार्यशाला का आयोजन आगरा शहर के विभव नगर इलाके मे किया है। प्रख्यात टीवी एंकर एंव कॉरियोग्राफर नन्दनी सिंह इस कार्यशाला को निर्देशित कर रही हैं।
विभव नगर के सेक्टर-2 मे आयोजित एक समारोह के दौरान शहर की सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती सरोज गौड़ ने मां सरस्वती के चित्र समक्ष दीप जलाकर इस एक माह की प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ किया। इस मौके पर उन्होने कहा कि हमारी संस्कृति से ही हमारी पहचान होती है। ऐसे मे इस तरह के आयोजन बच्चों को सीख देने के साथ-साथ संस्कृति की पहचान भी कराते हैं। कार्यशाला की निर्देशक श्रीमती नन्दनी सिंह के मुताबिक इस कार्यशाला मे प्रतिभागियों को केवल नाममात्र का रजिस्ट्रेशन शुल्क देना है। प्रशिक्षण को पूरी तरह निशुल्क रखा गया है। पूर्व की भांति संस्था ने कोई प्रशिक्षण शुल्क नही रखा है। कार्यशाला मे प्रतिभागियों को लोक, पाश्चात्य और क्लासिकल नृत्य का प्रशिक्षण दिया जायेगा। कार्यशाला के समापन पर हर प्रतिभागी को प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जायेगा। इसके अलावा शहर मे अन्य स्थानों पर भी संस्था कार्यशाला आयोजित करेगी।
समारोह मे सोम्या, खुशी, प्रदीप कुमार, वाजिद निसार, रुबाब बेग, एस. राजू, कमलदीप (आकाशवाणी), अक्षय कुमार (दिल्ली), राहुल और जावेद आदि समेत कई लोग उपस्थित थे। अन्त मे संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह ने आये हुये सभी मेहमानों का आभार जताया।

Tuesday, May 26, 2009

समाज सेवा का संकल्प

नागौर में पेंशनरों ने अपनी रूकी-रूकी सी जिंदगी को नया आयाम देने के लिए अब समाज सेवा करने का निर्णय लिया है। सरकारी कामकाज से मुक्त हो चुके पेंशनर अपने हितों का ध्यान रखने के साथ ही गरीबों व असहायों की सेवा करेंगे। यह संकल्प वार्षिक अघिवेशन एवं वरिष्ठ पेंशनर सम्मान समारोह में लिया गया। पेंशनरो ने स्वीकार किया कि उनके जीवन का संध्याकाल आ चुका है और इस स्थिति में समाज सेवा के जितने कार्य किए जाएं उतने ही कम है। यहां रतन बहन बालिका उच्च माध्यमिक स्कूल में समारोह की अध्यक्षता करते हुए लायन्स क्लब के पूर्व प्रान्तपाल जेठमल गहलोत ने कहा कि पेंशनर समाज के सेवा कार्यसराहनीय है। समाज ने यथार्थ के साथ जुडकर एक मिसाल कायम की है, इसे आगे बढाने की जरूरत है। समारोह के मुख्य अतिथि उपखण्ड अघिकारी शैलेन्द्र देवडा ने कहा कि पेंशनर समाज ने समाज सेवा के अनेक कार्यकर पहचान कायम की है।समाज के पिछले वर्षो में जन भावना के अनुरूप किए गए कार्यों की सराहना हो रही है। उन्होंने पेंशनर समाज की हर तरह से सेवा के लिए तैयार रहने का आश्वासन दिया। विशिष्ठ अतिथि जिला कोषाघिकारी कन्हैयालाल पालीवाल ने कहा कि पेंशनर स्त्रेह, श्रद्धा एवं विश्वास के प्रतीक है। पेंशनरों के अनुभव एवं ज्ञान का समाज के विकास में उपयोग संभव है। जिला शिक्षा अघिकारी (माध्यमिक प्रथम) दमयंती परमार ने कहा कि पेंशनर समाज दूसरों की भलाई में लगा है इससे समाज को प्रेरणा लेनी होगी। पेंशनर समाज के जिलाध्यक्ष शिवदत्त शर्माने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। समारोह में वरिष्ठ पेंशनर रामचन्द्र रणवाह, शिवदयाल मूथा व कन्हैयालाल ओझा ने भी विचार व्यक्त किए।

भारत में मिलती हैं गांधीगीरी की कई मिसालें

गांधी के दर्शन को लेकर आज फिल्में बन रही हैं। नाटक मंचित हो रहे हैं और खास बात यह है कि इस नाउम्मीद होती दुनिया में उनकी व्यावहारिक शिक्षा से ही आस लगाई जा रही है। हाल में एक चर्चित फिल्म के जरिए गांधीगीरी नामक एक नया जुमला चल पड़ा है। पर चलताऊ अंदाज में चलने वाली दुनिया को इस गांधीगीरी में ही राह दिखती है। मुन्ना भाई की तरह अपने देश में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिनकी गांधीगीरी सार्थक सिद्ध हुई है। और उन्होने समाज को एक नई दिशा देने का काम किया है।
शुरुआत करते हैं उड़ीसा की उर्मिला बेहरा से, जिनकी गांधीगीरी पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित है। शायद इसीलिए वे आज अपने राज्य में ‘गछ मां’ के नाम से विख्यात हो गई हैं। उन्होंने पिछले पंद्रह सालों में अपने इलाके में एक लाख से भी अधिक वृक्ष लगाकर हरियाली के प्रति श्रद्धा और पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की नजीर पेश की है। उर्मिला कोई पर्यावरणविद् नहीं हैं। वे ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्दों से भी एकदम अनजान हैं। लेकिन एक चीज बहुत अच्छी तरह जानती-समझती हैं कि पेड़ मनुष्य और धरती के लिए बहुत ही जरूरी है। इसलिए पेड़ लगाना उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा है। पेड़ लगाने की चाह उर्मिला के मन में दो बेटियों की मां बनने के बाद जगी। बेटे के अभाव में उन्होंने अपने आंगन में एक पेड़ लगाकर उसे ही बेटे की तरह प्यार व ममता देना शुरू कर दिया। इससे उनके मन को न सिर्फ संतोष मिला बल्कि निरंतर अनगिनत पेड़ लगाने की भी प्रेरणा मिली। घर के आंगन से शुरू हुआ पेड़ लगाने का उनका यह सिलसिला अब आसपास के साठ गांवों में फैल चुका है।
इसी तरह महाराष्ट्र के अमरावती जिले की सिंधुताई सपकाल की गांधीगीरी पर भी गौर किया जा सकता है। अपने राज्य में वे ‘मदर आफ थाउजेंड’ यानी हजारों संतानों की मां के नाम से जानी जाती हैं। सिंधुताई जब दस साल की थीं, उनका विवाह एक अधेड़ के साथ कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया। लेकिन जब वह तीसरे बच्चे की मां बनने वाली थीं तो उन पर लांछन लगाकर उन्हें घर से निकाल दिया गया। अपनी तीसरी संतान को जन्म देने तक उन्होंने जानवरों के रहने की जगह पर ही गुजारा किया। इसके बाद वे रेलवे स्टेशन पर रहने चली गईं, जहां उनकी मुलाकात घर से भागे, भगाए और सताए गए अनेक बच्चों से हुई। सिंधुताई ने अपने बच्चों के साथ उन बच्चों को भी अपनी ममता की छांव दी। सिंधुताई ने महाराष्ट्र के चार जिलों में दर्जनों संस्थाओं का जाल बुन दिया है। वहां बेसहारा बच्चों और महिलाओं को न सिर्फ आश्रय दिया जाता है, बल्कि वे भविष्य में कुछ बेहतर कर सकें, इसके लिए प्रशिक्षण के साथ अन्य व्यवस्थाएं भी की जाती हैं।
सहारनपुर की साठ वर्षीया शिमला सैनी की कहानी भी कम प्रेरक नहीं। जब विवाह कर वे ससुराल आईं तो परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर थोपी जाने वाली कई चीजें ढोंग लगीं। सिंदूर, चूड़ियां और रंगीन कपड़े त्याग कर उतर गईं गांव की कष्ट भोगती महिलाओं के जीवन में खुशियां लाने के काम में। पहले तो सभी ग्रामीण बहनों को संगठित कर शराब का विरोध किया। फिर देखा कि गांव के स्कूल में लड़कियों को शिक्षा से जान-बूझकर अलग रखा जा रहा है। उन्होंने अपने प्रयास से अलग से एक नया स्कूल खोला और वहां लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित की। जब महिलाएं शिक्षित होने लगीं तो उन्हें स्वयं सहायता समूह से जोड़कर आर्थिक दृष्टि से आत्मानिर्भर बनाने का सिलसिला शुरू किया। उन्हें अपने हर काम में महिलाओं का साथ मिला और वे कामयाब भी हुईं। उनका गांव सबदलपुर पड़ोस के गांवों के लिए अनुकरणीय गांव बन गया है।
वेश्याओं का जीवन हमारे समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोई इस अंधेरे से निकल कर मिसाल बन जाए तो यह किसी अचरज से कम नहीं। मुजफ्फरपुर में चतुर्भुज स्थान की रानी बेगम पहले वेश्याओं के कोठे पर धकेल दी गई, पर वह स्वयं चेतना से कोठे से बाहर निकलने में कामयाब हुई और अपनी जैसी अनेक लड़कियों का जीवन बदल दिया। उन्होंने स्कूल खोला फिर लड़कियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें वैकल्पिक रोजगार से जोड़ा।
सरकारी अनुदान और निजी संस्थाओं की आर्थिक सहायता से स्कूल चलाने की बात आम है लेकिन क्या भीख में मिलने वाले चावल के सहारे भी कोई स्कूल चल सकता है। इसको साकार कर दिखाया है कोलकाता से दो सौ किलोमीटर दूर दक्षिणपाड़ा में प्रशांत नाम के एक व्यक्ति ने। कभी नक्सली आंदोलन में शामिल रहे प्रशांत ने इस ख्वाब के लिए अपने दो मंजिले पक्के मकान को स्कूल में तब्दील कर दिया है। जहां गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है। तीन साल पहले शुरू हुए इस स्कूल में महज सात छात्र थे। लेकिन अब इनकी संख्या पचास से ऊपर पहुंच गई है। लेकिन छात्रों की तादाद बढ़ने लगी तो घर की फसल और नगदी से स्कूल चलाना मुश्किल हो गया। स्कूल के लिए और धन जुटाने की उधेड़बुन में फंसे प्रशांत को अचानक एक नया विचार सूझा। उन्होंने स्कूल की ओर से कटवा कस्बे और आसपास के चार गांवों में करीब डेढ़ सौ घरों में मिट्टी की एक-एक हांडी रखवा दी और लोगों से अपील की कि वे हांडी में रोजाना एक मुट्ठी चावल डालें। सच्चे मन से की गई इस अपील का असर यह हुआ कि हर महीने इन तमाम हांडियों से दो क्विंटल चावल जमा होने लगा। इसमें से आधा तो छात्रों को भोजन कराने में खर्च हो जाता है और बाकी चावल को बेचकर उससे मिलने वाली रकम से छात्रों को कापी-किताब व कलम खरीद कर दी जाती है। प्रशांत की लगन को देखकर गांव वाले उत्साह से चावल दान में देते ही हैं, पर अब तो कई युवक-युवतियां भी उनके काम हाथ बंटाने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के सिमगां गांव में पीयून गुरुजी के संबोधन सुनने पर कोई भी चौंक जाता है। यहां के सरकारी स्कूल में एकमात्र शिक्षक के तबादले के बाद जब लंबे समय तक कोई नया शिक्षक नहीं आया और बच्चे स्कूल से हर रोज लौटने लगे तो स्कूल के चपरासी ही शिक्षक की भूमिका में आ गए। चपरासी कमल यादव ही पिछले कई सालों से स्कूल के बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं।
शारीरिक अक्षमता के बावजूद बिहार के भागलपुर जिले के नाथनगर क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के बीच अनपढ़ता के अंधकार को दूर करने में बीबी मोहम्मदी की गांधीगीरी कमाल की है। शिक्षा के मामले में अत्यंत पिछड़ा माने जाने वाले नाथनगर जैसे क्षेत्र में बचपन से पोलियोग्रस्त मोहम्मदी ने जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई पूरी की, पर इतने भर से उसे सुकून नहीं मिला। वह अपने क्षेत्र की लड़कियों की निरक्षरता को लेकर बहुत बेचैन रहती थीं। ऐसे में एक दिन उन्होंने बगैर किसी से कोई मदद लिए अपने ही छोटे से घर में लड़कियों को बुलाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी मेहनत का लोगों ने तब लोहा मान लिया जब उसने रोजाना तीन शिफ्टों में कोई साढ़े तीन सौ लड़कियों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी इस निस्वार्थ और अपनी क्षमता से अधिक कोशिश की ओर पूरे इलाके का ध्यान गया। इसका अंजाम यह हुआ कि अब इस क्षेत्र में खुद अभिभावक ही अपनी बच्चियों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे हैं। मोहम्मदी ने अपनी यह कोशिश मुस्लिम बुनकरों के उस क्षेत्र में शुरू की जहां लड़कियां तो दूर लड़कों को भी शिक्षा देना जरूरी नहीं समझा जाता था।
गांधीगीरी की मिसाल खड़ी करने वालों की कतार वैसे देश की आबादी के हिसाब से बहुत छोटी है, लेकिन दिल्ली, फरीदाबाद, नोएडा और गुड़गांव की मजदूर बस्तियों में मेरी बरुआ, एस ए आजाद, रेणु चोपड़ा, हरिनंदन प्रसाद, अनुराधा बख्शी, अंजना राजगोपाल, श्रीरूपा मित्र चौधरी और रीना बनर्जी आदि ने अपने-अपने प्रयासों से हजारों बेसहारा बच्चों और महिलाओं का जीवन बदल दिया है। इनकी गांधीगीरी की कहीं कोई चर्चा नहीं होती पर इनसे रोशनी पाने वाले लोगों से पूछें तो उनका यही जवाब है कि अगर आज ये न होते तो हम कहीं के नहीं होते।
(लेखक प्रसून लतांत एक संस्था से जुड़े हैं)

Thursday, May 14, 2009

रंगलीला की दस दिवसीय रंगमंच कार्यशाला का आगाज़

आगरा। शहर की अग्रणी नाट्य संस्था रंगलीला दस दिवसीय रंगमंच कार्यशाला का आयोजन करने जा रही है। इस कार्यशाला का विधिवत शुभारम्भ आज उत्तर मध्य रेलवे संस्थान, आगरा कैन्ट मे किया गया। संस्था के अध्यक्ष एंव जाने माने पत्रकार अनिल शुक्ल के मुताबिक कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों को रंगमच के विषय में बेसिक जानकारियां दी जायेंगी, जो एक अच्छा कलाकार बनने मे सहायक हो सकती हैं। उनके मुताबिक रंगमंच किसी भी इन्सान को बेहतर तरीके से जीवन जीने की कला भी सिखाता है। रंगमंच कार्यशाला के संयोजक योगेन्द्र दुबे के अनुसार अभी तक रंगमंच प्रशिक्षण के लिये चालीस से ज़्यादा रजिस्ट्रेशन हो चुकें हैं। और अगले दो दिनों मे ये संख्या बढ भी सकती है। कार्यशाला का उदघाटन रेलवे के डीसीएम राजेश कुमार ने किया जबकि अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी एस एम गोगिया ने की। इस मौके पर केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के निदेशक रामवीर सिहं, सामाजिक संस्था थिरकन की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह, राजेश्वर प्रसाद सक्सेना, कवि सोम ठाकुर, केशव प्रसाद सिंह, जेपी शर्मा, मनमोहन भारद्वाज, गोकुल चन्द, डा. मधुरिमा शर्मा, सीपी रॉय, श्रवणलाल अग्रवाल, मनोज सिंह, अशोक कुमार, सोनम वर्मा, आदि मौजूद थे। संस्थान के सचिव दिनेश चन्द शर्मा ने सभी का धन्यवाद जताया।

Monday, May 11, 2009

कुछ बेवा आवाज़ें....

कुछ बेवा आवाजें अक्सर,

मस्जिद के पिछवाडे आकर..

ईटों की दीवार से लगकर,

पथराए कानो पे,

अपने होठ लगाकर,

इक बूढे अल्लाह का मातम करती हैं,

जो अपने आदम की सारी नस्लें उनकी कोख में रखकर,

खामोशी की कब्र में जा कर लेट गया है

(गुलज़ार)

समाज सेवा के साथ रोजगार भी

नई दिल्ली। गैर सरकारी संगठन उन सभी के लिए पहचान या सूचक शब्द बन गया है जो विकास संबंधी कैरियर में जाना चाहते हैं और सामाजिक क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं। एक समय ऐसा भी था जब प्रतिभाशाली युवा छात्रों को सिविल सेवा, चिकित्सा और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में जाने की सलाह दी जाती थी या छात्र इन क्षेत्रों में रुचि रखते थे। एनजीओ ऐसे संगठन हैं जो विशिष्ट प्रयोजन से गठित किए गए हैं अर्थात उन्हें किसी कारण कोई मिशन पूरा करना है। ये संगठन विभिन्न निधि देनेवाली एजेंसियों से अपेक्षित धनराशि प्राप्त करते हैं। जैसे - बड़े कॉरपोरेट हाउस, अंतर्राष्ट्रीय संगठन एवं सरकार। इसीलिए एनजीओ कैरियर का अर्थ अनिवार्यत: सामाजिक कार्यकर्ता होना ही नहीं है। अनेक विभाग मिलकर एनजीओ की रूपरेखा तैयार करते हैं। सामान्यत: एनजीओ में दो प्रमुख यूनिट्स होती हैं - पहला प्रशासनिक और दूसरा परियोजना। परियोजना यूनिट एनजीओ द्वारा ली गई परियोजनाओं से संबंधित कार्य करती है। उदाहरण के तौर पर, पर्यावरण संबंधी एनजीओ प्रदूषण नियंत्रण अभियान के संबंध में कार्य करता है, जबकि स्वास्थ्य क्षेत्र में कार्यशील एनजीओ एड्स नियत्रण अभियान की दिशा में कार्य कर सकता है। भारत जैसे विकासशील देश में सामाजिक कार्यकर्ता अनेक क्षेत्रों में से कोई क्षेत्र चुन सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से अनेक एनजीओ विकास के क्षेत्र में सामने आए हैं। भारत में विभिन्न प्रकार के एनजीओ हैं। 'चाइल्ड रिलीफ एंड यू' (क्राई-सीआरवाई) एवं 'बटरफ्लाई' बच्चों के लिए कार्य करते हैं। 'संजीवनी' संस्था मानसिक चुनौतियों का सामना करती है। 'वातावरण' एनजीओ सेंटर फॉर साइंस एंड एंवॉयरमेंट तथा संरक्षण पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित है। आदिवासी क्षेत्रों में एनजीओ कार्य कर रहे हैं। 'सहेली', 'साक्षी' और 'राही' खासतौर पर महिलाओं की समस्याएं निपटाती हैं। ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में समाज के सामने अनेक समस्याओं पर विचार करते हुए एनजीओ क्षेत्र में आने के लिए इच्छुक व्यक्ति के सामने असंख्य क्षेत्र हैं।

किटी पीर्टी छोड़कर समाज सेवा

भोपाल। बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यवसाय के क्षेत्र से जुड़ी शहर की महिलाओं ने नए साल में एक नए संगठन की नींव रखी है। मकसद है, अपने-अपने क्षेत्र में हासिल उपलब्धि का फायदा दूसरी महिलाओं तक पहुंचाना। खुद को किटी पार्टी तक सीमित न रखते हुए समाज से सीधे जुड़कर काम करना। बात हो रही है, भोपाल वुमन एसोसिएशन की। ‘जागरूक नारी-समर्थ समाज’ नारे के साथ भोपाल की कुछ महिलाओं ने खुद को किटी पार्टी तक सीमित न रखते हुए अपने दायरे को बढ़ाया है। शहर के अलग-अलग कोने से महिलाएं एकत्रित हुईं और बच्चों और महिलाओं की बुनियादी समस्याओं के हल के लिए अपने कौशल का इस्तेमाल करने की ठानी। नए साल में इन्होंने नया संगठन बनाकर यह संकल्प लिया है कि अपने लिए तो सभी वक्त निकालते हैं, दूसरों के लिए वक्त निकालना नए साल का संकल्प है। एसोसिएशन की सदस्य ज्योति नागरानी शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी हैं और चाहती हैं कि बच्चों को करियर काउंसिलिंग के साथ-साथ उनकी जिंदगी में आने वाली परेशानियों को हल करने के तरीके भी बताए जाएं। स्वास्थ्य संबंधी जानकारियां नेशनल एड्स कंट्रोल ओर्गेनाइजेशन की एमपी स्टेट कंसल्टेंट मोनल सिंह कहती हैं, महिलाओं को उनके और बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में संगठन के माध्यम से जानकारियां दी जा सकती हैं। (प्रीति, दैनिक भास्कर)

Friday, April 24, 2009

सामाजिक कार्यकर्ता के रुप मे रोजगार के अवसर

आज दुनिया में हजारों की संख्या में स्वयंसेवी संस्थाएँ मानवीय, सामाजिक, पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान में जुटी हुई हैं और संस्थानों को बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जिनमें न केवल सेवा का जज्बा हो बल्कि संबंधित क्षेत्र की जानकारी भी हो। अंतरराष्टीय स्तर पर काम करने वाली संस्थाएँ, जैसे यूनीसेफ, यूएनडीपी, वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड, रेडक्रॉस, क्राई तो हर साल समाजशास्त्र एवं समाज कार्य के एँसपर्ट की तलाश में बड़े शहरों में सेमिनार का आयोजन करते हैं। इन संस्थाओं में निदेशक, उपनिदेशक, प्रोग्राम ऑफिसर, टीम लीडर जैसे पदों पर अच्छे वेतनमान के साथ नियुक्त किया जाता है। इसके अलावा अन्य कई क्षेत्र हैं, जिसमें छात्रों को को-ऑडिनेटर, सर्वे ऑफिसर एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिसर जैसे पदों पर काम करने का मौका मिलता है। इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने के इच्छुक छात्रों के लिए राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने का मौका मिलता है। इसमें मूल वेतन न्यूनतम ८,००० रुपए से शुरू होता है, जबकि निदेशक वर्ग के लोगों को २ लाख रुपए तक मासिक वेतन के रूप में मिलते हैं, यानी वेतन की दृष्टि से भी यह क्षेत्र किसी अन्य कॅरियर से पीछे नहीं है। स्वयंसेवी क्षेत्र में रोजगार के प्रचुर अवसर पैदा हो गए हैं। अब तो गैर सरकारी संगठनों के अलावा बहुराष्ट्रीय निगम और औद्योगिक घराने भी बड़े पैमाने पर कंपनियों के सामाजिक उत्तरदायित्व के निर्वाह, खासकर शिक्षा, कल्याण और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए आगे आए हैं। अपराध विज्ञान और सुधारात्मक प्रशासन में विशेषज्ञता रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, कारागरों, सुधारगृहों, पर्यवेक्षणगृहों, बालगृहों तथा रिमांड होम्स जैसे संस्थानों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इन संस्थानों में सामाजिक कार्यकर्ता का मुख्य कार्य कैदियों के लिए रचनात्मक एवं सृजनात्मक वातावरण का निर्माण करना है। परिवार और बाल कल्याण के क्षेत्र में सामाजिक कार्यकर्ता महिलाओं, बच्चों, वृद्धों और कमजोर व्यक्तियों के जीवन स्तर में सुधार लाने में योगदान कर सकते हैं। चिकित्सा और मनोविश्लेषणात्मक सामाजिक कार्य के क्षेत्र में उनकी नियुक्ति आमतौर पर अस्पतालों, सेनेटोरियम्स, परिवार नियोजनँलिनिकों, नशीली दवाओं और शराब की लतछुड़ाने वाले केंद्रों में की जाती है। समाज कार्य के पाठ्यक्रम में मानव कल्याण से संबंधित कई विषय शामिल किए गए हैं। भारतीय सामाजिक समस्याएँ, पारिवारिक सहायता एवं मार्गदर्शन, मातृ में शिशु कल्याण, अपराध मनोविज्ञान, ग्रामीण एवं शहरी विकास आदि। समाज कार्य में उपाधि प्राप्त् करने के बाद अंतरराष्ट्रीय कल्याण की संस्थाओं जैसे यूनिसेफ व यूनेस्को, विकलांग कल्याण केंद्र, अनाथ आश्रम, महिला उद्धार गृह, प्रौढ़ शिक्षा परियोजना, समाज कार्य शिक्षा से संबंधित शिक्षण संस्थाओं, समाजकल्याण विभाग, मातृ एवं शिशु कल्याण विभागों में कॅरियर के अच्छे अवसर हैं। चिकित्सा एवं मनोचिकित्सा के क्षेत्र में अस्पतालों में नियुक्ति हो सकती है। इसके अतिरिक्त गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) के माध्यम से भी एड्स जागरूकता, महिला कल्याण, गरीबी उन्मूलन, आपदा प्रबंधन जैसे कार्यों को अंजाम दिया जा सकता है। सामाजिक कार्य क्षेत्र में आप निजी और सरकारी कंपनियों में कार्मिक अधिकारी समुदाय संगठनकर्ता या समन्वयक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि पदों पर भी रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही अध्यापन के क्षेत्र में भी अच्छा कॅरियर बनाया जा सकता है। (साभार-careerdisha.org)

Monday, February 9, 2009

थिरकन मिला रही है बिछड़े दिलों को

थिरकन अब आगरा पुलिस के साथ मिलकर बिछड़े दिलों को मिलाने का काम कर रही है। पिछले कई हफ्तों से आगरा पुलिस लाईन मे परिवार परामर्श केन्द्र संचालित किया जा रहा है। जिसमें कई परिवारों को एक किया जा चुका है। थिरकन की सचिव श्रीमती नन्दनी सिंह के मुताबिक पुलिस अधीक्षक (अपराध) अशफाक अहमद की अध्यक्षता मे शुरु किया गया केन्द्र अब एक बड़े परिवार का रूप ले चुका है। जनपदभर से आये घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न जैसे मामलों को निपटाने के लिये 75 सदस्यों की एक टीम तैयार की गयी है। जिसमे शहर के चुनिन्दा लोगों को शामिल किया गया है जो ऐसे लोगों को कांउसलिंग दे सकें। केन्द्र के सभी सदस्यों को कांउसलिंग का विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया है। हर रविवार को लगने वाले कांउसलिंग शिविर मे परिवारों को एक करने पर ज़ोर दिया जा रहा है। अदालत मे विचाराधीन मामलों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है। पुलिस अधीक्षक अशफाक अहमद इस तरह के केन्द्र चलाने मे माहिर माने जाते हैं। थिरकन सामाजिक संगठन लगातार समाज सेवा के कार्यों को अंजाम दे रहा है। और बिना किसी सरकारी मदद के इस को लगातार अन्जाम दे रहा है।