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Monday, May 11, 2009

कुछ बेवा आवाज़ें....

कुछ बेवा आवाजें अक्सर,

मस्जिद के पिछवाडे आकर..

ईटों की दीवार से लगकर,

पथराए कानो पे,

अपने होठ लगाकर,

इक बूढे अल्लाह का मातम करती हैं,

जो अपने आदम की सारी नस्लें उनकी कोख में रखकर,

खामोशी की कब्र में जा कर लेट गया है

(गुलज़ार)

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