Wednesday, November 4, 2009
थिरकन ने बांटे ज़रुरतमन्दो को कपड़े और फल
लालकिले के सामने रामलीला ग्राउण्ड़ गेट पर "थिरकन" द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बिना किसी औपचारिकता के सन्त कबीरदास नगर मलिन बस्ती की रहने वाली महिलाओं को गर्म कपड़े और सूट बाटें गये। संस्था के सदस्यों ने जिले के आला अधिकारियों के साथ मिलकर इस बस्ती की पैंतीस महिलाओं को कपड़े बाटें और बस्ती के लगभग 80 बच्चों को सामुहिक रुप से फल वितरण किया गया। सभी बच्चे खासे उत्साहित दिखाई दिये। कार्यक्रम मे बतौर मुख्य अतिथि आये पुलिस अधीक्षक नगर उदय प्रताप ने संस्था के कार्यों को सराहते हुये कहा कि किसी संस्था का बिना सरकारी मदद के लगातार इस तरह के सामाजिक कार्य करना अपने आप मे एक मिसाल है। थिरकन जैसी संस्थाओं का उत्साह बढाने के लिये शहर के लोगों को मदद के लिये आगे आना चाहिये क्योंकि ये संस्थायें समाज के निमार्ण मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
आगरा विकास मंच के अध्यक्ष और समाजसेवी अशोक जैन सीए ने थिरकन को एक मिसाल बताते हुये कहा कि संस्था ने असहाय और गरीब लोगों का तन ढकने के लिये जो क्लॉथ बैंक शुरु किया है ये एक अनुठा प्रयास है। उन्होने कहा कि समाज मे रहने वाले ज़रुरतमन्दों की सेवा करने का जो काम थिरकन कर रही है उसकी सरहना की जानी चाहिये ताकि संस्था और उसके सदस्यों को प्रोत्साहन मिल सके।
एस.पी.क्राइम अशफाक अहमद ने कहा कि "थिरकन" के सदस्य पुलिस लाइन मे शुरु किये गये परिवार परामर्श केन्द्र के दौरान भी सक्रीय रहते हैं। इस तरह ये संस्था हर स्तर पर अपने कार्यों को ज़िम्मेदारी के साथ कर रही है। इस्लामिया लोकल एजेन्सी के चैयरमैन असलम कुरैशी ने भी कार्यक्रम मे बढ-चढ कर भागेदारी की। उन्होने भी "थिरकन" के जागरुकता अभियानों और सामाजिक कार्यक्रमो को जमकर सराहते हुये कहा कि धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर ऐसे कामों को करने वाली ये संस्था दूसरे लोगों को प्रोत्साहन दे सकती है।
संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह ने बताया कि "थिरकन" लगातार आठ सालों से सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम करती आ रही है। जिसके लिये सारा फण्ड संस्था के सदस्य ही जुटाते हैं। जो लोग संस्था जुडना या मदद करना चाहते हैं वो thirkan@gmail.com पर सम्पर्क कर सकते हैं। या फिर ज़्यादा जानकारी के लिये www.thirkanthengo.blogspot.com पर लॉगइन कर सकते हैं। संस्थाध्यक्ष के मुताबिक "थिरकन" पुलिस द्वारा मनाये जाने वाले यातायात माह के दौरान भी जागरुकता कार्यक्रम आयोजित करेगी।
अन्त मे संस्था की सचिव एंव प्रख्यात टीवी एंकर नंदनी सिंह ने सभी सदस्यों और सहयोगीयों का आभार जताया। इस मौके पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमैटी के महासचिव शिवराज सिंह यादव के अलावा असिस्टेन्ट कमिश्नर वाणिज्जय कर अजय उपाध्याय, वीडीओ सुरेश कुमार सिंह, सपा के वरिष्ठ नेता हाजी बिलाल, वरिष्ठ समाजसेवी संदेश जैन, अमज़द कुरैशी, गौरव गुप्ता, कमलदीप, हरि बाबू और मनिका के अलावा शहर के कई गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
Sunday, October 4, 2009
थिरकन का एक और कदम...
Tuesday, September 1, 2009
स्वाइन फ्लू जागरुकता कैम्प मीड़िया की नज़रों में
स्वाइन फ्लू जैसे गम्भीर विषय को लेकर संस्था ने जिला चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों की मदद ली। संस्था के पिछले कार्यों की जानकारी होने पर आगरा के मुख्य चिकित्साधिकारी ड़ा. रामरतन ने "थिरकन" के इस प्रयास की प्रशंसा करते हुये स्वाइन फ्लू का काम देख रहे डिप्टी सीएमओ डा़. हरीश कुमार को इस अभियान मे लगाया। डिप्टी सीएमओ डा. हरीश ने "थिरकन" के साथ अभियान मे भागेदारी की और भविष्य मे इस तरह के कार्यों मे सहयोग देने का आश्वासन भी "थिरकन" को दिया। इस जागरुकता अभियान की ख़बर को दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान टाइम्स, आई नेक्स्ट आदि समाचार पत्रों ने खासी जगह दी। इसके अलावा ई-टीवी, ज़ी-यूपी, सी-न्यूज़, डीजी न्यूज़ और फोकस टीवी ने भी स्वाइन फ्लू जागरुकता अभियान की ख़बर को कई बुलेटिन मे प्रसारित किया। "थिरकन" परिवार ने इस अभियान को जारी रखते हुये मीड़िया का आभार प्रकट किया। भविष्य मे नागरिकों और मीड़िया से सहयोग की अपील भी की।
Monday, August 31, 2009
थिरकन का स्वाइन फ्लू जागरुकता अभियान शुरू
"थिरकन" द्वारा सैन्ट एन्ड्रूज़ स्कूल, बल्केश्वर मे आयोजित स्वाइन फ्लू जागरुकता शिविर मे मुख्य रुप से डिप्टी सीएमओ डा0 हरीश ने अपनी टीम के साथ शिरकत की। उन्होने छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि स्वाइन फ्लू एक विदेशी बीमारी है जो संक्रमण से फैलती है। इसके वायरस का नाम एच-1 एन-1 है। ये वायरस हवा के द्वारा फैलता है। लेकिन कुछ बातों का ख्याल रखकर इससे बचा जा सकता है। जैसे कि भीड़-भाड़ वाले इलाकों मे जाने से बचे, मास्क का प्रयोग करें। छींकते और खांसते समय टीशु पेपर का इस्तेमाल करें और इसे तुरन्त डस्टबिन मे फैंक दें। बार-बार हाथ धोने की आदत डालें। खांसी-ज़ुकाम, बुखार आदि के लक्षण होने पर सरकारी अस्पताल या अपने फिजीशियन से तुरन्त सम्पर्क करें। राजकीय चिकित्सक ड़ा राजेश त्रिवेदी ने बताया कि इसके लिये टेमीफ्लू नामक दवा सभी सरकारी अस्पतालों मे आसानी से उपलब्ध है। इसे दवा की दुकानों पर बेचे जाने पर रोक लगा दी गयी है ताकि इसका दुरुपयोग ना हो।
सैन्ट एन्ड्रूज़ स्कूल के प्रधानाचार्य डा. गिरधर शर्मा ने कहा कि "थिरकन" की पहल प्रशंसा योग्य है। छात्र-छात्राओं को इस गम्भीर बीमारी से बचने के जो उपाय बताये गये हैं वो उनके लिये लाभकारी होगें। और वो खुद जागरुक होने के साथ-साथ दूसरे लोगों को भी स्वाइन फ्लू के विषय मे जागरुक करने का काम करेगें। अन्त मे संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह ने आभार जताते हुये बताया कि "थिरकन" पिछले आठ सालों से बिना सरकारी मदद के समाज सेवा के कार्यों को करती आ रही है। इस काम में संस्था के सदस्यों का योगदान रहता है। संस्था ने 2007 में गरीब और असहाय लोगों के लिये क्लॉथ बैंक की स्थापना की। जिसके माध्यम कपड़ों का वितरण जारी है। और अब संस्था ने लोगों को स्वाइन फ्लू के प्रति जागरुक करने का बीड़ा उठाया है। यह काम आपसी सहयोग के बिना अधूरा है। और जनता तक इस बारे में सही जानकारी पंहुचाना भी ज़रुरी हो जाता है। इस कार्य मे मीड़िया की अहम भूमिका है।
कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राओं ने उपचिकित्साधिकारी डा0 हरीश और राजकीय चिकित्सक डा0 राजेश से स्वाइन फ्लू के विषय मे कई सवाल पूछे। चिकित्सकों ने विस्तार से उनके सवालों के जवाब दिये। "थिरकन" की ओर से सभी को जागरुकता सम्बन्धी पैम्फलेट भी बांटे गये। कार्यक्रम के दौरान छात्र-छात्राओं के अलावा खुशी, सर्वोत्तम सिंह, गौरव गुप्ता, प्रदीप कुमार, जगत शर्मा, मनोज शर्मा, विकास गोयल, सरिका, राधेश्याम, श्रीमती रानी गुप्ता, रुबाब, मनीष सिंह और जावेद आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। संचालन कमलदीप ने किया।Sunday, August 16, 2009
मीड़िया मे थिरकन क्लॉथ बैंक
Wednesday, August 12, 2009
थिरकन क्लॉथ बैंक ने ज़रुरतमंदो को दिये कपड़े
थिरकन सामाजिक एंव सांस्कृतिक संस्था के सदस्यों ने आज अनुराग नगर, बल्केश्वर मे जाकर महिलाओं और बच्चों को कपड़े वितरित किये। इसके अलावा कई लोगों को फलों का वितरण भी किया गया। संस्थाध्यक्ष श्रीमती स्नेहलता सिंह ने कहा कि हमारी संस्था बिना किसी सरकारी मदद के पिछले नौ सालों से सामाजिक कार्य कर रही है। ज़रुरतमंदो की मदद करना ही सबसे बड़ा पुण्य है। इसी मकसद के साथ हमारी संस्था ने क्लॉथ बैंक की स्थापना की है। श्रीमती सिंह के मुताबिक सदस्यों के सहयोग से पुराने या छोटे हो चुके कपड़े एक जगह एकत्र कर क्लॉथ बैंक मे जमा कर रहे है। इन कपड़ों को सामुहिक रुप से गरीब और असहाय को वितरित किया जा रहा है। उन्होने कहा कि हमे इस बात को समझने की ज़रुरत है कि हमारे-आपके पुराने कपड़े किसी गरीब बच्चे का सपना हो सकते हैं। उन्होने सभी शहरवासियों से अपने पुराने या छोटे हो चुके कपड़े संस्था को दान करने की अपील भी की।
इस असवर पर संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह, सदस्य खुशी, कमलदीप, मंजू शर्मा, प्रदीप, राजकुमार वर्मा, विष्णु शर्मा आदि के अलावा वस्त्र लेने वालों मे आशा देवी, नीलम, भावना, लाली, चुन्नी और सोनिया आदि के नाम प्रमुख हैं।
Wednesday, July 8, 2009
महिलाओं के लिये भी नृत्य कार्यशाला
Friday, June 19, 2009
उत्साह से भरे हैं थिरकन के प्रतिभागी
Thursday, June 4, 2009
नृत्य कार्यशाला मे प्रशिक्षण शुरु
Wednesday, June 3, 2009
थिरकन कार्यशाला छायी मीड़िया में... रजिस्ट्रेशन जारी
थिरकन की नृत्य कार्यशाला शुरु
विभव नगर के सेक्टर-2 मे आयोजित एक समारोह के दौरान शहर की सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती सरोज गौड़ ने मां सरस्वती के चित्र समक्ष दीप जलाकर इस एक माह की प्रशिक्षण कार्यशाला का शुभारम्भ किया। इस मौके पर उन्होने कहा कि हमारी संस्कृति से ही हमारी पहचान होती है। ऐसे मे इस तरह के आयोजन बच्चों को सीख देने के साथ-साथ संस्कृति की पहचान भी कराते हैं। कार्यशाला की निर्देशक श्रीमती नन्दनी सिंह के मुताबिक इस कार्यशाला मे प्रतिभागियों को केवल नाममात्र का रजिस्ट्रेशन शुल्क देना है। प्रशिक्षण को पूरी तरह निशुल्क रखा गया है। पूर्व की भांति संस्था ने कोई प्रशिक्षण शुल्क नही रखा है। कार्यशाला मे प्रतिभागियों को लोक, पाश्चात्य और क्लासिकल नृत्य का प्रशिक्षण दिया जायेगा। कार्यशाला के समापन पर हर प्रतिभागी को प्रमाण-पत्र भी प्रदान किया जायेगा। इसके अलावा शहर मे अन्य स्थानों पर भी संस्था कार्यशाला आयोजित करेगी।
समारोह मे सोम्या, खुशी, प्रदीप कुमार, वाजिद निसार, रुबाब बेग, एस. राजू, कमलदीप (आकाशवाणी), अक्षय कुमार (दिल्ली), राहुल और जावेद आदि समेत कई लोग उपस्थित थे। अन्त मे संस्था की अध्यक्षा श्रीमती स्नेहलता सिंह ने आये हुये सभी मेहमानों का आभार जताया।
Tuesday, May 26, 2009
समाज सेवा का संकल्प
भारत में मिलती हैं गांधीगीरी की कई मिसालें
शुरुआत करते हैं उड़ीसा की उर्मिला बेहरा से, जिनकी गांधीगीरी पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित है। शायद इसीलिए वे आज अपने राज्य में ‘गछ मां’ के नाम से विख्यात हो गई हैं। उन्होंने पिछले पंद्रह सालों में अपने इलाके में एक लाख से भी अधिक वृक्ष लगाकर हरियाली के प्रति श्रद्धा और पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की नजीर पेश की है। उर्मिला कोई पर्यावरणविद् नहीं हैं। वे ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्दों से भी एकदम अनजान हैं। लेकिन एक चीज बहुत अच्छी तरह जानती-समझती हैं कि पेड़ मनुष्य और धरती के लिए बहुत ही जरूरी है। इसलिए पेड़ लगाना उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा है। पेड़ लगाने की चाह उर्मिला के मन में दो बेटियों की मां बनने के बाद जगी। बेटे के अभाव में उन्होंने अपने आंगन में एक पेड़ लगाकर उसे ही बेटे की तरह प्यार व ममता देना शुरू कर दिया। इससे उनके मन को न सिर्फ संतोष मिला बल्कि निरंतर अनगिनत पेड़ लगाने की भी प्रेरणा मिली। घर के आंगन से शुरू हुआ पेड़ लगाने का उनका यह सिलसिला अब आसपास के साठ गांवों में फैल चुका है।
इसी तरह महाराष्ट्र के अमरावती जिले की सिंधुताई सपकाल की गांधीगीरी पर भी गौर किया जा सकता है। अपने राज्य में वे ‘मदर आफ थाउजेंड’ यानी हजारों संतानों की मां के नाम से जानी जाती हैं। सिंधुताई जब दस साल की थीं, उनका विवाह एक अधेड़ के साथ कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया। लेकिन जब वह तीसरे बच्चे की मां बनने वाली थीं तो उन पर लांछन लगाकर उन्हें घर से निकाल दिया गया। अपनी तीसरी संतान को जन्म देने तक उन्होंने जानवरों के रहने की जगह पर ही गुजारा किया। इसके बाद वे रेलवे स्टेशन पर रहने चली गईं, जहां उनकी मुलाकात घर से भागे, भगाए और सताए गए अनेक बच्चों से हुई। सिंधुताई ने अपने बच्चों के साथ उन बच्चों को भी अपनी ममता की छांव दी। सिंधुताई ने महाराष्ट्र के चार जिलों में दर्जनों संस्थाओं का जाल बुन दिया है। वहां बेसहारा बच्चों और महिलाओं को न सिर्फ आश्रय दिया जाता है, बल्कि वे भविष्य में कुछ बेहतर कर सकें, इसके लिए प्रशिक्षण के साथ अन्य व्यवस्थाएं भी की जाती हैं।
सहारनपुर की साठ वर्षीया शिमला सैनी की कहानी भी कम प्रेरक नहीं। जब विवाह कर वे ससुराल आईं तो परंपरा और रीति-रिवाज के नाम पर थोपी जाने वाली कई चीजें ढोंग लगीं। सिंदूर, चूड़ियां और रंगीन कपड़े त्याग कर उतर गईं गांव की कष्ट भोगती महिलाओं के जीवन में खुशियां लाने के काम में। पहले तो सभी ग्रामीण बहनों को संगठित कर शराब का विरोध किया। फिर देखा कि गांव के स्कूल में लड़कियों को शिक्षा से जान-बूझकर अलग रखा जा रहा है। उन्होंने अपने प्रयास से अलग से एक नया स्कूल खोला और वहां लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित की। जब महिलाएं शिक्षित होने लगीं तो उन्हें स्वयं सहायता समूह से जोड़कर आर्थिक दृष्टि से आत्मानिर्भर बनाने का सिलसिला शुरू किया। उन्हें अपने हर काम में महिलाओं का साथ मिला और वे कामयाब भी हुईं। उनका गांव सबदलपुर पड़ोस के गांवों के लिए अनुकरणीय गांव बन गया है।
वेश्याओं का जीवन हमारे समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोई इस अंधेरे से निकल कर मिसाल बन जाए तो यह किसी अचरज से कम नहीं। मुजफ्फरपुर में चतुर्भुज स्थान की रानी बेगम पहले वेश्याओं के कोठे पर धकेल दी गई, पर वह स्वयं चेतना से कोठे से बाहर निकलने में कामयाब हुई और अपनी जैसी अनेक लड़कियों का जीवन बदल दिया। उन्होंने स्कूल खोला फिर लड़कियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें वैकल्पिक रोजगार से जोड़ा।
सरकारी अनुदान और निजी संस्थाओं की आर्थिक सहायता से स्कूल चलाने की बात आम है लेकिन क्या भीख में मिलने वाले चावल के सहारे भी कोई स्कूल चल सकता है। इसको साकार कर दिखाया है कोलकाता से दो सौ किलोमीटर दूर दक्षिणपाड़ा में प्रशांत नाम के एक व्यक्ति ने। कभी नक्सली आंदोलन में शामिल रहे प्रशांत ने इस ख्वाब के लिए अपने दो मंजिले पक्के मकान को स्कूल में तब्दील कर दिया है। जहां गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है। तीन साल पहले शुरू हुए इस स्कूल में महज सात छात्र थे। लेकिन अब इनकी संख्या पचास से ऊपर पहुंच गई है। लेकिन छात्रों की तादाद बढ़ने लगी तो घर की फसल और नगदी से स्कूल चलाना मुश्किल हो गया। स्कूल के लिए और धन जुटाने की उधेड़बुन में फंसे प्रशांत को अचानक एक नया विचार सूझा। उन्होंने स्कूल की ओर से कटवा कस्बे और आसपास के चार गांवों में करीब डेढ़ सौ घरों में मिट्टी की एक-एक हांडी रखवा दी और लोगों से अपील की कि वे हांडी में रोजाना एक मुट्ठी चावल डालें। सच्चे मन से की गई इस अपील का असर यह हुआ कि हर महीने इन तमाम हांडियों से दो क्विंटल चावल जमा होने लगा। इसमें से आधा तो छात्रों को भोजन कराने में खर्च हो जाता है और बाकी चावल को बेचकर उससे मिलने वाली रकम से छात्रों को कापी-किताब व कलम खरीद कर दी जाती है। प्रशांत की लगन को देखकर गांव वाले उत्साह से चावल दान में देते ही हैं, पर अब तो कई युवक-युवतियां भी उनके काम हाथ बंटाने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के सिमगां गांव में पीयून गुरुजी के संबोधन सुनने पर कोई भी चौंक जाता है। यहां के सरकारी स्कूल में एकमात्र शिक्षक के तबादले के बाद जब लंबे समय तक कोई नया शिक्षक नहीं आया और बच्चे स्कूल से हर रोज लौटने लगे तो स्कूल के चपरासी ही शिक्षक की भूमिका में आ गए। चपरासी कमल यादव ही पिछले कई सालों से स्कूल के बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं।
शारीरिक अक्षमता के बावजूद बिहार के भागलपुर जिले के नाथनगर क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के बीच अनपढ़ता के अंधकार को दूर करने में बीबी मोहम्मदी की गांधीगीरी कमाल की है। शिक्षा के मामले में अत्यंत पिछड़ा माने जाने वाले नाथनगर जैसे क्षेत्र में बचपन से पोलियोग्रस्त मोहम्मदी ने जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई पूरी की, पर इतने भर से उसे सुकून नहीं मिला। वह अपने क्षेत्र की लड़कियों की निरक्षरता को लेकर बहुत बेचैन रहती थीं। ऐसे में एक दिन उन्होंने बगैर किसी से कोई मदद लिए अपने ही छोटे से घर में लड़कियों को बुलाकर पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी मेहनत का लोगों ने तब लोहा मान लिया जब उसने रोजाना तीन शिफ्टों में कोई साढ़े तीन सौ लड़कियों को पढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी इस निस्वार्थ और अपनी क्षमता से अधिक कोशिश की ओर पूरे इलाके का ध्यान गया। इसका अंजाम यह हुआ कि अब इस क्षेत्र में खुद अभिभावक ही अपनी बच्चियों को पढ़ाने के लिए आगे आने लगे हैं। मोहम्मदी ने अपनी यह कोशिश मुस्लिम बुनकरों के उस क्षेत्र में शुरू की जहां लड़कियां तो दूर लड़कों को भी शिक्षा देना जरूरी नहीं समझा जाता था।
गांधीगीरी की मिसाल खड़ी करने वालों की कतार वैसे देश की आबादी के हिसाब से बहुत छोटी है, लेकिन दिल्ली, फरीदाबाद, नोएडा और गुड़गांव की मजदूर बस्तियों में मेरी बरुआ, एस ए आजाद, रेणु चोपड़ा, हरिनंदन प्रसाद, अनुराधा बख्शी, अंजना राजगोपाल, श्रीरूपा मित्र चौधरी और रीना बनर्जी आदि ने अपने-अपने प्रयासों से हजारों बेसहारा बच्चों और महिलाओं का जीवन बदल दिया है। इनकी गांधीगीरी की कहीं कोई चर्चा नहीं होती पर इनसे रोशनी पाने वाले लोगों से पूछें तो उनका यही जवाब है कि अगर आज ये न होते तो हम कहीं के नहीं होते।
(लेखक प्रसून लतांत एक संस्था से जुड़े हैं)
Thursday, May 14, 2009
रंगलीला की दस दिवसीय रंगमंच कार्यशाला का आगाज़
Monday, May 11, 2009
कुछ बेवा आवाज़ें....
कुछ बेवा आवाजें अक्सर,
मस्जिद के पिछवाडे आकर..
ईटों की दीवार से लगकर,
पथराए कानो पे,
अपने होठ लगाकर,
इक बूढे अल्लाह का मातम करती हैं,
जो अपने आदम की सारी नस्लें उनकी कोख में रखकर,
खामोशी की कब्र में जा कर लेट गया है
(गुलज़ार)